यह कविता पोवारी बोली में है, जो एक हिंदी की उपभाषा (जनगणना २००१ क्र. ४२) है यह कविता पोवारी बोली में है, जो एक हिंदी की उपभाषा (जनगणना २००१ क्र. ४२) है
जो चाहे जीना सुकून से तो मोहब्बत मत करना जिसे जीना हो मर मर के तो तुम बेशक मोहब्बत से खुद को ... जो चाहे जीना सुकून से तो मोहब्बत मत करना जिसे जीना हो मर मर के तो तुम बेश...
सर्वश्रेष्ठ ज्ञाता बन कर चुकाना होगा हमें भी ऋण। सर्वश्रेष्ठ ज्ञाता बन कर चुकाना होगा हमें भी ऋण।
सूर्य की रोशनी बन हरता है तम मित्र ! सूर्य की रोशनी बन हरता है तम मित्र !
मुँह चूमते हैं फूल उरूस-ए-बहार का। मुँह चूमते हैं फूल उरूस-ए-बहार का।
उसे चाहने की आस में दिल में लड्डू फूट आते हैं। उसे चाहने की आस में दिल में लड्डू फूट आते हैं।